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लालवांडा: लोक-कथा (मिज़ोरम)

(लालवांडा मिज़ोरम का राज्य पृष्प है)

बहुत समय पहले एक गाँव में एक किसान रहता था । उसकी एक बेटी थी जिसका नाम देवी था । वह लड़की बहुत ही सुन्दर थी । किसान और उसके परिवार का जीवन हँसी-खुशी के साथ गुजर रहा था। अचानक एक दिन राज्य का पुरोहित चार सैनिकों के साथ किसान के घर आया और उसने किसान को बताया कि राजा अपने बेटे का विवाह देवी से करना चाहता है और एक माह बाद बारात लेकर आएगा। राजा का सन्देश देकर पुरोहित सैनिकों सहित वापस चला गया।

किसान ने बेटी से इस रिश्ते के सम्बन्ध में बात की और उसे समझाया कि राजकुमार से विवाह करके वह राजकुमारियों के समान शान से रहेगी, अतः वह यह रिश्ता स्वीकार कर ले, किन्तु देवी इस रिश्ते के लिए भी तैयार नहीं हुई।

देवी को इस रिश्ते के लिए गाँव के बड़े बुजुर्गों और उसकी सहेलियों ने भी बहुत समझाया, लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रही। न जाने क्यों देवी को पक्का विश्वास था कि स्वर्गलेक से एक देवता आएगा और उसे ब्याह कर अपने साथ ले जाएगा।

देवी की जिद देखकर किसान परेशान हो उठा। वह सभी रिश्तों को ठुकरा सकता था, लेकिन राजकुमार का रिश्ता ठुकराने का अर्थ था पूरे घर और गाँव की बर्बादी।

देवी भी इस सच्चाई को जानती थी। वह अच्छी तरह इस बात को समझती थी कि यदि उसने राजकुमार के साथ विवाह करने से इनकार कर दिया तो राजा उसके घर और गाँववालों को मार डालेगा और राजकुमार का उसके साथ जोर-जबरदस्ती से विवाह कर देगा।

देवी ने इस रिश्ते से इनकार तो कर दिया था, लेकिन इनकार करने के बाद वह सोच में पड़ गई थी। उसके पास केवल एक महीने का समय था। देवी ने बहुत सोच-विचार किया और अन्त में यह निर्णय लिया कि एक माह में स्वर्गलोक का कोई देवता आकर उसे नहीं ले जाता है तो वह अपने माता-पिता और गाँववालों को बर्बादी से बचाने के लिए राजकुमार से विवाह कर लेगी।

हमेशा फूलों के समान खिली-खिली रहनेवाली देवी अब गुमसुम रहने लगी थी। वह घर-परिवार के सभी काम पहले की तरह करती थी, प्रतिदिन घर की सफाई, पानी भरना, स्नान करके मन्दिर जाना और दोपहर एवं रात के समय खाना बनाना। सभी कुछ पहले की तरह था, लेकिन अब वह दुखी और परेशान रहने लगी थी।
धीरे-धीरे दिन गुजरने लगे और महीना समाप्त होने को केवल एक दिन बचा।

देवी अब सामान्य रहने लगी थी। अगले दिन राजकुमार की बारात आनी थी और उसका विवाह होना था, किन्तु देवी को अभी भी इस बात का विश्वास था कि शीघ्र ही कोई चमत्कार होगा, स्वर्गलोक से एक देवता आएगा और उसे ब्याह कर अपने साथ ले जाएगा।

देवी ने दिनभर घर-बाहर के काम किए और रात का अँधेरा होते ही बिस्तर पर लेट गई। आज नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। अगले दिन ही सब कुछ होना था।

देवी ने सारी रात तारे देखते हुए गुजार दी प्रातःकाल होते ही वह हमेशा की तरह घर के कामकाज में लग गई।
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अचानक उसकी दृष्टि एक सुन्दर युवती पर पड़ी। युवती अद्वितीय सुन्दरी थी। यह देवी थी। देवता ने इन्द्रलोक में भी इतनी सुन्दर युवती नहीं देखी थी। युवती किसी दुख में डूबी नदी के किनारे बैठी कुछ सोच रही थी। वह सोच-विचार में इतनी डूबी हुई थी कि पास ही खड़े देवता को भी नहीं देख सकी।

देवता बड़ी देर तक युवती को एकटक देखता रहा। उसे ऐसा लग रहा था, मानो वह इसी युवती के लिए इन्द्रलोक से पृथ्वीलोक पर आया है। वास्तव में देवता को युवती से प्यार हो गया था।

अचानक देवता के मन में न जाने क्या आया कि उसने तेजी से आगे बढ़कर देवी का हाथ पकड़ लिया और उसे अपना परिचय दिए बिना हीं उसके रूप और सौन्दर्य का बखान करते हुए उससे प्रणय निवेदन करने लगा।

देवी को अब होश आया। अपने सामने एक वृद्ध को इस प्रकार प्रणय निवेदन करते देखकर उसने उसे कुछ भी भला-बुरा नहीं कहा, बल्कि रोने लगी।

देवता देवी से प्रणय निवेदन करते समय शायद यह भूल गया था कि वह एक वृद्ध के रूप में है। उसने तुरन्त अपनी भूल का सुधार किया और देवी से उसके दुख का कारण पूछने लगा।

देवी बड़े सरल स्वभाव की थी। उसने सिसकियाँ भरते हुए वृद्ध बने देवता को अपनी सारी कहानी सुना दी। उसने रोते-रोते देवता को यह भी बता दिया कि उसे अभी भी यह विश्वास है कि उड़नेवाले घोड़े पर सवार होकर एक देवता आएगा और उसे व्याह कर साथ ले जाएगा।

देवता ने युवती की कहानी सुनी तो उसका मन पसीज उठा। उसने दो पल के लिए देवी से आँखें बन्द करने के लिए कहा और एक ओर चल पड़ा।
देवी बड़ी भोली थी। वृद्ध के कहने पर उसने आँखें बन्द कर लीं।

अचानक घोड़े की हिनहिनाहट सुनकर देवी ने आँखें खोलीं। देवी ने अपने सामने जो कुछ भी देखा तो उसे विश्वास नहीं हुआ। उसके सामने उड़नेवाले घोड़े पर सवार एक देवता खड़ा था। एक युवा सुन्दर देवता।
देवी उठकर खड़ी हो गई।

देवता भी घोड़े से नीचे उतरा और उसने देवी से कहा कि वह अभी उसे अपने साथ इन्द्रलोक ले चलने के लिए तैयार है।

देवी की प्रसन्‍नता का ठिकाना नहीं था। वह सिर झुकाए अपने देवता के सामने खड़ी थी। उसकी आँखों से खुशी के आँसू बह रहे थे। उसके विश्वास की विजय हुई थी।

देवी बड़ी बुद्धिमान और लोकलाज का पालन करनेवाली थी। उसने देवता से कहा कि इस समय इन्द्रलोक चलने से उसके माता-पिता की बदनामी होगी। शाम को एक दुष्ट राजा अपने बेटे की बारात लेकर आएगा। देवता राजा को अपनी दैवी शक्ति से चमत्कृत करे और सबके सामने विवाह करके उसे अपने साथ इन्द्रलोक ले जाए।
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इन्द्र द्वारा कोई बात न सुनने पर देवता को भी क्रोध आ गया और उसने देवी को पृथ्वीलोक लौटाने से इनकार कर दिया।

एक स्त्री के लिए देवता का क्रोध देखकर इन्द्र का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति से देवी को पृथ्वीलोक की ओर उछाल दिया।

देवता इन्द्र की शक्ति से परिचित था। अतः उसने अपने क्रोध को नियन्त्रित किया और देवी के प्राणों की भीख माँगने लगा।

इन्द्र का क्रोध शान्त हो गया और उन्हें देवी पर दया आ गई। उन्होंने पुनः अपनी दैवी शक्ति का उपयोग किया और देवी को धरती पर गिरने के पहले एक सुन्दर फूल बना दिया। लालवांडा यही फूल है।

(डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक 'भारत का राष्ट्रीय
पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प' से साभार)

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साभारः लो

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